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Wednesday 7 August 2013

कुछ अफ़साने : लाजिमी हैं



                                            कुछ अफ़साने : लाजिमी हैं ---- (2)
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हम इसके बारे में ज्यादा , उसके बारे में कम बात करेंगे  .यूँ तो उसके बिना इसका ज़िक्र अधूरा है ,तो जनाब आते रहेंगे बीच-बीच में .हो सकता है कई बार पूरी तवज़्ज़ो ही चुरा ले जाएँ .

पता है न ,दोनों के बीच का रिश्ता ..कितना गहरा है ..एक-दूसरे के सिवा किसी से नहीं लड़ते ,न ही किसी के साथ  वो जुबान  इस्तेमाल करते हैं,जो एक-दूसरे के साथ  एक-दूसरे के लिए करते हैं .वैसे जुबान इसकी ज्यादा तेज़ है ,उसे तो इसकी बराबरी पर आने के लिए धार देनी पड़ी है .सारे तक़ल्लुफ़ उठा कर ताक पर रख दिए गए हैं . एक वक़्त था जब कभी इसकी जुबान  ज़्यादा तीखी हो जाती और उसे काटने लगती तो ये अफ़सोस जता दिया करती .अफ़सोस तो आज भी होता है,पर उसे हवा तक नहीं लगने देती .वो भी खिलाड़ी है ,सुलगने देता है इसे अपनी ही करनी की आग में , बाद में शातिर  पानी के छींटें डाल कर पहल भी कर लेता है ..जल-जल कर कोयला हुई एक बूँद से ही शांत हो जाती है .

कई बार बोरिया-बिस्तर बाँध कर रुखसती की तैयारी कर चुकी थी . हवा की  सरसराहट में हलकी सी भी उसकी आहट  मिलती ,इरादे ढेर हो जाते इसके . वो जानता था ..इसकी रवानगी से ठीक पहले नमू होता ..उलझा देता इसे इधर-उधर की बातों में ..जब तक इसे कुछ समझ आता ,तब तक इसका सारा  सामान वापिस अपनी-अपनी जगह पर टिक चुका होता और खुद भी उसके कंधे पर सर टिकाये सो रही होती .

वो दुनियादार था ,इसकी दुनिया और दुनियादारी अब बस उस तक ही  सिमट कर रह गई थी .सारा दिन बैठी उसे देखती .वो काम करता रहता ,ये काम का कबाड़ा करती रहती .कई बार बेचारा काम छोड़ कर बेपर की बेवजह सुनता रहता ..जब-जब उसने सुनने में आना-कानी की ,तब-तब इसने ताबड़-तोड़ सामान उठा-उठा कर पटक दिया उसके ऊपर ..

उसके आने से इसकी दुनिया में भारी उलट-पुलट हुई थी ,उसकी सारी  अच्छाइयों को क़ुबूल करने के बावजूद इल्ज़ामात  से बरी नहीं किया था इसने उसे ,दिन भर  कोसती उसे ..यही एक काम था जो उससे मिलने के बाद पूरे मन से किया करती ..कभी उसे खडूस कहती तो कभी खूसट .. कभी फुद्दू तो कभी भौंदू .वो सब जानता था ,इसे भी कोई परवाह नहीं थी .उस से भी बड़े-बड़े कारनामे करती .इससे बात करते ज़रा उसकी तवज़्ज़ो भटकी नहीं कि लम्बे-लम्बे नाखूनों से नोंच-खरोंच डालती उसे ,जवाब देने में पल भर की चूक हुई नहीं,चेहरे से नज़र हटी नहीं कि उसका जिस्म छलनी कर देती ..बात-बात में गिरहबान पकड़ लेती ...उसकी किसी भी कमीज या कुर्ते में एक भी बटन बाकी नहीं बचा था .अपने बचाव के लिए हाथ तक न बढाता वो ..इसके तसव्वुर की हदें जानता था ,ये इसकी दुनिया थी ,जिसमे वो खलल नहीं डालना चाहता था ,ये भी जानता था कि  हाथ ने तसव्वुर को छू  भी लिया तो ये रिश्ता हज़ारों फीट की ऊंचाई  से सीधे गहरी खाई में जा गिरेगा .

इसका  उसकी दुनिया में आने-जाने का कोई वक़्त न था ,अचानक आती ,उसके हाथ से किताब छीन  कर रख देती ..उसके पास आकर सर से सर मिलाकर  अंग्रेजी का 'एल' बनाती और  सो जाती ,नींद में उठती ,उसकी नाक से जोर से नाक रगडती ,उसके बाल सूंघती और इत्मीनान से फिर सो जाती ...तमाम एहतियात के बावजूद  चूक हो गई उससे और पूछ बैठा एक दिन -''ये तेरे  अन्दर कौन सा जानवर है ,जो तुझ से इस तरह की हरकतें करवाता है ? '' वो उठी ... पूरी ताक़त से अपने सींग उसके पेट में घुसेड दिए ,उसकी आँखों पर पंजों से वार किये ,  गर्दन में दांत गड़ा दिए ,कमर में दुलत्ती जड़ी ,कूद कर  कंधे पर सवार हो गई और उसके बालों से लटक कर झूला झूलते झूलते  माथे पर  डंस लिया ,हिनहिनाई और फुर्र से उड़ गई .. 

3 comments:

  1. एक अलग तरह के कथ्य और शिल्प में लिपटे हुए भावों से सजी बेहद खूबसूरत कहानी ... सुन्दर, आत्मीय भाव में लिखे ये मासूम अफ़साने अपने से लगे ...

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  2. भाव से भरे शब्द .... बढ़िया )

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