रोंपा एक नया अफसानाक़ब्र वही थी
अब्र नया था
लहराता अलमस्त वहाँ
महक रहा था
लहक रहा था
नया नया
दफ़न हुआ था जो पुराना
कभी तो था वो नया नया
बुझ ही गया
रुझ ही गया
आखिर था वो बहुत पुराना
बहुत पुराना बहुत सयाना
नया रहेगा नया नया क्या
नया होगा और नया क्या
जैसे और पुराना हुआ पुराना
बहुत पुराना बहुत सयाना
08 -12 -2013
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - आराधना पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति के साथ बेहतरीन रचना
ReplyDeleteHello mam......... aapki kavita me aapke vicharo ki ati sunder abhivyakti hai....... i m searching for yr poem 'ek this son chiraiya'....pls do forward its link.
ReplyDeleteWith kind regards
Jyoti