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Thursday, 7 June 2012

एक औरत





आँखें बंद होती और
दुनिया के दरवाज़े खुल जाते
आम बहुत ख़ास हो जाता
अलफ़ाज़ सजे-धजे ,नए -नए
खूबसूरत लिबास में
ज़हन पर दस्तक देते
वो अधमुंदी आँखों से पकडती ,
दिल के करीब लाती
महसूस करती
साँसें रफ़्तार पकडती
ज़हन जज़्बात बेकाबू हो जाते
आँखें खुल जाती
तब
न अह्सास न अलफ़ाज़

एक औरत
बिस्तर पर दम तोड़ रही होती ..

5 comments:

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  2. आपकी कविता में एक इन्टरनल पैशन होता है. जिसका असर देर तक होता है... बहुत सुन्दर... बिस्तर पर दम तोडना एक नया विम्ब है.. बढ़िया...

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  3. आप हर रचना को अपनी पूरी मौलिकता के साथ परखते हैं ...आपका यह नजरिया काबिल -ए-तारीफ़ है अरुण जी

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  4. कविता का कथ्य मन के भीतर की बतों को कुशलतापूर्वक बयां करते हैं।

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