आँखें बंद होती और
दुनिया के दरवाज़े खुल जाते
आम बहुत ख़ास हो जाता
अलफ़ाज़ सजे-धजे ,नए -नए
खूबसूरत लिबास में
ज़हन पर दस्तक देते
वो अधमुंदी आँखों से पकडती ,
दिल के करीब लाती
महसूस करती
साँसें रफ़्तार पकडती
ज़हन जज़्बात बेकाबू हो जाते
आँखें खुल जाती
तब
न अह्सास न अलफ़ाज़
एक औरत
बिस्तर पर दम तोड़ रही होती ..
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ReplyDeleteआपकी कविता में एक इन्टरनल पैशन होता है. जिसका असर देर तक होता है... बहुत सुन्दर... बिस्तर पर दम तोडना एक नया विम्ब है.. बढ़िया...
ReplyDeleteआप हर रचना को अपनी पूरी मौलिकता के साथ परखते हैं ...आपका यह नजरिया काबिल -ए-तारीफ़ है अरुण जी
ReplyDeleteकविता का कथ्य मन के भीतर की बतों को कुशलतापूर्वक बयां करते हैं।
ReplyDeleteJee .. Shukriya Sanjay
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