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Saturday 2 June 2012

लाहौल विला !




लाहौल विला !
वो औरत थी !

गलियारे से गुज़रती
सब अवाक रह जाते
बला की खूबसूरत ,ठहरी ठहरी सी

इस वक़्त से पहले भी एक वक़्त था
वो सिर्फ ख़ूबसूरती थी ,
नज़ाक़त थी ,मासूमियत थी .
वक़्त का कहर ..
चेहरा बदल गया
दाग नमूदार होने लगे
जिस्म ढलने लगा
मासूमियत खो गई
या ,खुद भी खो सी गई ..
क्या हुआ उसे ....

वो औरत से इंसान हो रही थी
नहीं जाना सजना -संवरना
जाना तो
बिखरना -संभलना -बिखरना
जाना तो
लम्हा लम्हा जीना
लम्हा लम्हा मरना
उसके और उसके वजूद की लड़ाई
जानलेवा थी

मर रही थी
जैसे जी रही थी
गिर रही थी
जैसे उठ रही थी

वो औरत से इंसान हो रही थी
अपना  वजूद महसूस कर रही थी
ज़हन में हो रहे धमाके सुन रही थी
धमाके  दहला रहे थे उसे
कैसे कहती
उसे कुछ हुआ था
कैसे क़ुबूल करती ..
वो गुनहगार थी

लाहौल विला !
वो औरत थी ?
या लानत थी ?
वो लानत नहीं  करिश्मा थी

जीना चाहती थी
जीना जानती थी
रास्ता बना रही थी
रास्ता बन रहा था ..

(Picture from web)

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