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Sunday, 17 June 2012

जाने कैसा था वह




दर्द  बहता था रगों में
नींदों में जागता
साँसों में बजता
करवटों में कराहता
बोलों में सुबकता
ख़ामोशी में सिसकता
हंसती तो आँखों में आ जाता

रोती तो बहता ,बहता ...बहता ही जाता 

5 comments:

  1. बेहद खूबसूरत रचना....

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  2. दर्द जब होता है तो सारे अहसास दर्द में पग जाते हैं...आपने बहुत अच्छा लिखा.

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  3. जाने कैसा था वह
    दर्द था बस दर्द,,
    दर्द, दर्द, दर्द, दर्द, दर्द, दर्द,
    हमदर्द ....
    नसों को खौलाता,
    पिघलता दर्द
    तोड़ता मरोड़ता...
    रूह तक पर खरोचें दर्ज करता दर्द...

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