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Thursday, 22 November 2012

कहना है बहुत






कहना है बहुत
कहा कुछ नहीं
फिर भी
कहते रहो तुम
सिर्फ सुनूँ मैं

दुनिया है हसीं
वक़्त है नहीं
तो जाओ
उधर देखो तुम
तुम्हे देखूं मैं

बरसे बदलियाँ
नयन न कभी
बरसाएं जल
हरे रहो तुम
सूख जाऊं मैं

मंजिल हो गगन
क़दमों में ज़मीन
हौसला लिए
आगे बढ़ो तुम
पीछे रहूँ मैं

वादों को कहो
ज़हन में कभी
कुलबुलाएं न
भूल जाना तुम
याद रखूँ मैं

(Picture courtesy Google)

13 comments:

  1. वादों को कहो
    ज़हन में कभी
    कुलबुलाएं न
    भूल जाना तुम
    याद रखूँ मैं

    humesha ki tarah bahut sundar nazm ..

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    1. कभी कभी बस यूँ ही ...यूँ भी ...

      शुक्रिया शोभा ..

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  2. वाह..बहुत ही ख़ूबसूरत प्रस्तुति|लिखती रहो आप..पढते रहेगे हम |

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    1. आप, और बाकी भी दोस्त ही तो संबल हैं मेरा जो साझा करने का हौसला देते हैं ..

      शुक्रिया पिंकी

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  3. अव्यक्त व्यक्त...सुन्दर- सहज कविता।

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    1. जी ..सिद्धेश्वर जी

      शुक्रिया सर ..

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  4. एक और प्यारी सी कविता है भावों से भरी
    यूँ ही लिखती रहें आप सदा
    पढ़ते रहें हम , बेहद कोमल अभिव्यक्ति !!!

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    1. दिल से निकली दुआएं हैं ..

      शुक्रिया इंदु ..आप ही तो ताक़त हैं हमारी

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  5. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति वंदना जी....

    अनु

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया अनु जी ..

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    2. आभार अनु जी ..

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  6. बहुत खूब - अति सुंदर

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    1. शुक्रिया राकेश जी ..

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