एक थी सोन चिरैया .......................
क्यूंकि सीखा हुआ सब गलत साबित हुआ
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Saturday, 29 December 2012
हिम्मत
हर बार बगावत करनी चाही थी
मोर्चा संभालने की हिम्मत थी
आसमान छूते हौसले थे
अकेले चलने की हिम्मत थी
कदम आगे बढ़ रहे थे
नज़र जो पड़ी जिस्म को भेदती
नीचे से ऊपर
ऊपर से नीचे
डर गई
हर बार
मर गई
हर बार
2 comments:
mridula pradhan
4 January 2013 at 22:02
gahre bhawon ko samete.....
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Vandana KL Grover
8 January 2013 at 23:47
शुक्रिया मृदुला जी ..
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gahre bhawon ko samete.....
ReplyDeleteशुक्रिया मृदुला जी ..
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