बकवास करती थी बहुत
देखा था
हंसती भी बहुत थी
सोशल थी ,वर्कर थी ,
पॉपुलर थी ,सेंसिटिव थी
कुछ गलत फहमियाँ भी थी उसे
( हो जाती हैं )
इश्क -मुहब्बत में पड़ी नहीं थी
(घनी ज़ालिम थी )
अच्छाइयां भी थी उसमे
(कविता नहीं लिखती थी )
मर्दों को लम्पट नहीं समझती थी
(पाला जो नहीं पडा था )
गाली-गलौज कर लेती थी
( मौके और दस्तूर के हिसाब से )
हाथापाई भी कर लेती थी
( मन करता तो )
चीखने -चिल्लाने से परहेज़ नहीं करती थी
( यूँ बहुत शर्मीली थी )
ये थी -थी क्या लगा रखा है
मरी नहीं है अभी
मरने की प्रक्रिया में हैं ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-02-2013) के चर्चा मंच-११५२ (बदहाल लोकतन्त्रः जिम्मेदार कौन) पर भी होगी!
सूचनार्थ.. सादर!
आभार डॉ शास्त्री
Deleteसादर ..
कड़वे सच को स्वर देती बेहतरीन कविताई के लिए साधुवाद ,शुभकामनाये
ReplyDeleteआभार मित्र ..
DeleteVANDANAJI
ReplyDeleteSABHAR, AAP KI KAVITA BAHUT KHUBSURAT HAI . KAVITA KA ANT BAHUT DARAWANA HAI, AISE LAGA JAISE AAPNE MERE BARE MAY LIKHA HO....SHAYAD AAP MUJHE BAHUT KARIB SAY JAANTI HAI...