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Saturday, 9 February 2013

कविता नहीं लिखती थी


बकवास करती थी बहुत
देखा था
हंसती भी बहुत थी
सोशल थी ,वर्कर थी ,
पॉपुलर थी ,सेंसिटिव थी

कुछ गलत फहमियाँ भी थी उसे
( हो जाती हैं )
इश्क -मुहब्बत में पड़ी नहीं थी
(घनी ज़ालिम थी )
अच्छाइयां भी थी उसमे
(कविता नहीं लिखती थी )
मर्दों को लम्पट नहीं समझती थी
(पाला जो नहीं पडा था )
गाली-गलौज कर लेती थी
( मौके और दस्तूर के हिसाब से )
 हाथापाई भी कर लेती थी
( मन करता तो )
चीखने -चिल्लाने से परहेज़ नहीं करती थी
( यूँ  बहुत शर्मीली थी )

ये थी -थी क्या लगा रखा है
मरी नहीं है अभी
मरने की प्रक्रिया में हैं ...

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-02-2013) के चर्चा मंच-११५२ (बदहाल लोकतन्त्रः जिम्मेदार कौन) पर भी होगी!
    सूचनार्थ.. सादर!

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    Replies
    1. आभार डॉ शास्त्री

      सादर ..

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  2. कड़वे सच को स्वर देती बेहतरीन कविताई के लिए साधुवाद ,शुभकामनाये

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  3. VANDANAJI
    SABHAR, AAP KI KAVITA BAHUT KHUBSURAT HAI . KAVITA KA ANT BAHUT DARAWANA HAI, AISE LAGA JAISE AAPNE MERE BARE MAY LIKHA HO....SHAYAD AAP MUJHE BAHUT KARIB SAY JAANTI HAI...

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