ऐ भूरीयाँ अक्खां
नई पह्चान्दीयां कुझ वी
ओ रूह है
जेह्ड़ी तेरे तक पहुंचदी है
जेह्ड़ी तेरे तक पहुंचदी है
गुलाबी रूहां दा
ए रिश्ता आसमानी है
बदनीयत इल्जामाँ दा भार बहुत है
ऐ हरी -भरी धरती
लानतां सह-सह के
लानतां सह-सह के
ज़र्द पै गई सी जो
रिश्तियां दी अग ने
साड़ के
स्याह कर दित्ता है एहनू
किसे रिश्ते दा बोझ
नई सह सकदी हुन
ऐ धरती ..
We have a bias against human approaches, we judge, we sentence and we say that we did it all because we loved. But at no stage do we tell them all why they were loved, why hated and why judged at all?
ReplyDeleteWe are all humans and we are bent to be what we are. For one I would never like to be a God. Insaan reh nahi paata, khuda ban ke kya karoon.
So very true ..Pranesh ji
DeleteThankyou .
बदनीयत इलजामां दा भार बहुत है पर रिश्तियां दा भार वी केड़ा घटट है.....धरती सब सह जांदी ए...सड़के या सड़दे होये......
ReplyDeleteSach kiyaa tussi Maya ji.. Bhaar hi bhaar hai Dharti te ...ilzaamaa'n da hove bhaanve laanataa'n da ...yaa fer rishteyaa'n da..
DeleteShukriya ..
रिश्ते बोझ न लगें...तो बेहतर! बोझ लगने लगें...तो थक कर बैठ जाना बेहतर!गनीमत है... कुछ रिश्ते रूहानी होते हैं...अब भी... और रूहों पर कोई बोझ न नहीं होता!
ReplyDeletejee Santosh ..roohaani rishtey bojhil nahi'n hote ... maangte kuchh nahi'n ... prashn nahi'n karte... swaarth siddh nahi'n karte ...
Deletephir bhi rishtey --roohaani yaa zameeni -- jeene k liye nihaayat zaroori ..