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Thursday, 9 August 2012

शुक्र है ..





शुक्र है
मुझे कोई गफलत
कोई गुमां न था कि
मैं दुनिया बदल डालूंगी

शुक्र है
मुझे पता था कि
मैं वह हूँ
इंसान के तबके में
जिसे औरत जैसा कुछ कहा जाता है
शुक्र है
मैंने कभी कोई कोशिश नहीं की
नेता बनने  की
क्रान्ति लाने की
यह सोचने की कि
सोचने से सपने साकार होते हैं

शुक्र है
इससे पहले ही
मैं अनचाहे पत्नी
और
अनजाने ही
मां  बना दी गई

शुक्र है ..

6 comments:

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .....

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  2. शोभा जी आपने बहुत ही अच्छा लिखा है,सीधे दिल में उतर गयी.ये मेरा भी दर्द है.

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  3. सबसे अच्छी बात और लोगों की गफलत :-
    "शुक्र है
    मुझे कोई गफलत
    कोई गुमां न था कि
    मैं दुनिया बदल डालूंगी!"
    क्योंकि यह अपने ही तरीके से द्युति मान रहेगी !

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    Replies
    1. धीरेन्द्र जी ..आभार ..निहित अर्थ की गहराई तक पहुँचने के लिए

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