मेरे वजूद का एक हिस्सा
सोया है किसी कोने में
खुदाया महफूज़ रख उसे
कि लम्हे हैं कुछ हसीनतर क़ैद उसमें
बचपन है जवानी है
ठिठोली है ठहाके हैं
कुछ नर्म अहसास भी हैं ..
और
कुछ अनछुए
अनजाने पल
किसी की ज़िन्दगी के
जो कर देते
मुक़म्मल एक शख्सियत को
काश !
मिल जाता वो दस्तावेज़
लिखा जाता था जो
खामोशी में अक्सर
फिक्र थी जिसमे ,कशमकश थी ,
हौसले थे ,कोशिशें थी ,
ज़द्दो-ज़हद थी ..और थी
बुलंदी पर पहुँचने की पूरी दास्ताँ ..
पर
मुझे तलाश है
कुछ रूमानी लम्हों की
और
कुछ अपने साथ जिए वक़्त की
मुझे तलाश है अपनी रूह की
मेरे खुदा
दे दे मुझे
मेरे वालिद की
वो
सफ़ेद -सुनहरी डायरी !
बहुत बहुत सुन्दर वंदना जी
ReplyDeleteकवि की दुनिया और वहाँ के शब्द वाह !
"कुछ अनछुए
अनजाने पल
किसी की ज़िन्दगी के
जो कर देते
मुक़म्मल एक शख्सियत को"
.......................... साधुवाद !
प्रशंसा में बरती उदारता के लिए दिल से शुक्रिया ..भरत
Deleteअनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार....वंदना जी
ReplyDeleteThankyou Sanjay ji ..
ReplyDeleteMano sundar shabdo me piroyi hui ek mala hai ye kavita.
ReplyDeleteआभार वंदना जी ..
ReplyDeleteबहुत दिन से एक सोच खदबदा रही थी ..
वंदनाजी...मैं उमा झुनझुनवाला..अपने एक नाटक के सन्दर्भ में आपसे बात करना चाहती थी..फेसबुक पर भी आप मुझे लिख सकती है...uma jhunjhunwala (उमा), कोल्कता से हूँ थिएटर करती हूँ..मेरा ईमेल इ डी है - jhunjhunwala.uma@gmail.com...
ReplyDeleteregards
uma
उमा जी
Deleteब्लॉग पर आपकी आमद अच्छी लगी
ई-मेल के ज़रिये संपर्क करना बेहतर होगा फेसबुक की बजाय
सादर ..