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Wednesday, 29 August 2012

उबासी ने अंगडाई लेते हुए कहा






उबासी ने अंगडाई लेते हुए कहा
कितने दिन हुए तुम्हे
आँख बंद किये
अपने दिल की सुने
कितने अच्छे थे वो दिन
जब शब्दों की दुनाली से
ख्यालों को ज़मीनोंदाज़ कर दिया जाता
अँधेरे मौसमो
गहराते सायों को
नेस्तनाबूद  किया जाता
तुम्हारे आत्म-समर्पण ने
अलसा दिया है सपनों को
अब ढूंढ रहे हैं
आँखों की छाँव
भटक रही हैं आँख
भटक रहे हैं सपने
ठहरी आँख को नहीं है कोई इंतज़ार
न देखती हैं बाहर
न देखती हैं भीतर
अलसाए से लम्हे
वक़्त से नज़रें चुराते
दामन से लिपटे
मासूम बच्चे की मानिंद बेखबर
बैठे हैं देहरी पर
तकते हैं राह
कि बजेगा घड़ियाल
और चल देंगे आगे
कुछ भी तो नहीं होता
रुक गया है सब
सुनो !
पलक को झपकने दो
आँख को सोने दो
सपनों को आने दो
दुनिया को चलने दो
फर्क पड़ता है
तुम्हारे होने,
न होने से


12 comments:

  1. कल 31/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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    1. यशवंत जी ..बहुत बहुत आभार ..
      उम्मीद कर रही हूँ यह विस्तृत होता दायरा मुझे रास आएगा ..अच्छा लगा खुद को सब के साथ 'नई-पुरानी हलचल ' में पाकर ..

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  2. बहुत गहन भाव लिए अच्छी रचना

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    Replies
    1. रचना पसंद आई आपको .. तहे -दिल से शुक्रिया संगीता जी

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  3. समझ आ गया है मुझे ,समझौते और समर्पण का फर्क .......बढिया रचना है :"उबासी ने अंगडाई लेते हुए कहा ....".यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
    लम्पटता के मानी क्या हैं ?
    .

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  4. पलक को झपकने दो
    आँख को सोने दो
    सपनों को आने दो
    दुनिया को चलने दो
    फर्क पड़ता है
    तुम्हारे होने,
    न होने से... सही कहा वंदना जी
    मुबारक !

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  5. तुम्हारे आत्म-समर्पण ने
    अलसा दिया है सपनों को
    अब ढूंढ रहे हैं
    आँखों की छाँव
    भटक रही हैं आँख
    भटक रहे हैं सपने

    palak jhapakne ka intazaar karte hue sapne .. bahut sundar rachna ..

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  6. बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना

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  7. बहुत आभार संजय जी ..

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