उबासी ने अंगडाई लेते हुए कहा
कितने दिन हुए तुम्हे
आँख बंद किये
अपने दिल की सुने
कितने अच्छे थे वो दिन
जब शब्दों की दुनाली से
ख्यालों को ज़मीनोंदाज़ कर दिया जाता
अँधेरे मौसमो
गहराते सायों को
नेस्तनाबूद किया जाता
तुम्हारे आत्म-समर्पण ने
अलसा दिया है सपनों को
अब ढूंढ रहे हैं
आँखों की छाँव
भटक रही हैं आँख
भटक रहे हैं सपने
ठहरी आँख को नहीं है कोई इंतज़ार
न देखती हैं बाहर
न देखती हैं भीतर
अलसाए से लम्हे
वक़्त से नज़रें चुराते
दामन से लिपटे
मासूम बच्चे की मानिंद बेखबर
बैठे हैं देहरी पर
तकते हैं राह
कि बजेगा घड़ियाल
और चल देंगे आगे
कुछ भी तो नहीं होता
रुक गया है सब
सुनो !
पलक को झपकने दो
आँख को सोने दो
सपनों को आने दो
दुनिया को चलने दो
फर्क पड़ता है
तुम्हारे होने,
न होने से
कल 31/08/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
यशवंत जी ..बहुत बहुत आभार ..
Deleteउम्मीद कर रही हूँ यह विस्तृत होता दायरा मुझे रास आएगा ..अच्छा लगा खुद को सब के साथ 'नई-पुरानी हलचल ' में पाकर ..
बहुत गहन भाव लिए अच्छी रचना
ReplyDeleteरचना पसंद आई आपको .. तहे -दिल से शुक्रिया संगीता जी
Deleteसमझ आ गया है मुझे ,समझौते और समर्पण का फर्क .......बढिया रचना है :"उबासी ने अंगडाई लेते हुए कहा ....".यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteram ram bhai
बृहस्पतिवार, 30 अगस्त 2012
लम्पटता के मानी क्या हैं ?
.
Thankyou Virendra ji
Deleteपलक को झपकने दो
ReplyDeleteआँख को सोने दो
सपनों को आने दो
दुनिया को चलने दो
फर्क पड़ता है
तुम्हारे होने,
न होने से... सही कहा वंदना जी
मुबारक !
Thankyou Bharat
Deleteतुम्हारे आत्म-समर्पण ने
ReplyDeleteअलसा दिया है सपनों को
अब ढूंढ रहे हैं
आँखों की छाँव
भटक रही हैं आँख
भटक रहे हैं सपने
palak jhapakne ka intazaar karte hue sapne .. bahut sundar rachna ..
Thankyou Shobha
Deleteबेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना
ReplyDeleteबहुत आभार संजय जी ..
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