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Saturday 25 August 2012

मेरे वालिद की सुनहरी डायरी







मेरे वजूद का एक हिस्सा
सोया है किसी कोने में
खुदाया महफूज़ रख उसे
कि  लम्हे हैं कुछ हसीनतर क़ैद उसमें
बचपन है जवानी है
ठिठोली है ठहाके हैं
कुछ नर्म  अहसास भी हैं ..
और
कुछ अनछुए
अनजाने पल
किसी की ज़िन्दगी के
जो कर देते
मुक़म्मल एक शख्सियत को
काश !
मिल जाता वो दस्तावेज़
लिखा जाता था जो
खामोशी में अक्सर
फिक्र थी जिसमे ,कशमकश थी ,
हौसले थे ,कोशिशें थी ,
ज़द्दो-ज़हद थी ..और थी
बुलंदी पर पहुँचने की पूरी दास्ताँ  ..
पर
मुझे तलाश है
कुछ रूमानी लम्हों की
और
कुछ अपने साथ जिए वक़्त की
मुझे तलाश है अपनी रूह की
मेरे खुदा
दे दे मुझे
मेरे वालिद की
वो
सफ़ेद -सुनहरी डायरी  !

8 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर वंदना जी
    कवि की दुनिया और वहाँ के शब्द वाह !
    "कुछ अनछुए
    अनजाने पल
    किसी की ज़िन्दगी के
    जो कर देते
    मुक़म्मल एक शख्सियत को"
    .......................... साधुवाद !

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    1. प्रशंसा में बरती उदारता के लिए दिल से शुक्रिया ..भरत

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  2. अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार....वंदना जी

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  3. Mano sundar shabdo me piroyi hui ek mala hai ye kavita.

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  4. आभार वंदना जी ..
    बहुत दिन से एक सोच खदबदा रही थी ..

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  5. वंदनाजी...मैं उमा झुनझुनवाला..अपने एक नाटक के सन्दर्भ में आपसे बात करना चाहती थी..फेसबुक पर भी आप मुझे लिख सकती है...uma jhunjhunwala (उमा), कोल्कता से हूँ थिएटर करती हूँ..मेरा ईमेल इ डी है - jhunjhunwala.uma@gmail.com...
    regards
    uma

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    Replies
    1. उमा जी
      ब्लॉग पर आपकी आमद अच्छी लगी
      ई-मेल के ज़रिये संपर्क करना बेहतर होगा फेसबुक की बजाय
      सादर ..

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