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Friday, 28 September 2012

तुम्हारे लिए





वो जो एक कविता पहले लिखी थी ना
वो तुम्हारे लिए थी
उससे पहले की दो
वो भी तुम्हारे लिए थी
एक मैंने बहुत उदासी में लिखी थी
ख़ुशी में अमूमन मैंने कभी नहीं लिखा था
जिस दिन मैंने बहुत ख़ुशी महसूस की
तुम्हारे लिए ही लिखी
नींद नहीं आई
बहुत सोचा किया
वो जो एक और  लिखी
तुम्हारे लिए ही ..
एक मुराद पूरी हुई
बहुत याद आई
एक और लिख डाली
नाराजगी में जब पांच दिन बात नहीं की थी
जितने दिन ,
उतनी ही और लिखी
बहुत गुस्सा आया यक -ब-यक
जिस दिन
दो की चिन्दियाँ उड़ाई
तीन की धज्जियां
ज़ख्म बह निकला
एक और लिखी गई
जो बह गई उस बहाव में
बहते -बिखरते को समेटना आसान न था
अब तक
बह रहा है सब
कह रहा है कुछ


8 comments:

  1. पिंकी शाह (Pinky Shah)1 October 2012 at 01:25

    मुझे मेरी नींद बहुत प्यारी है,नींद के आगे क्या कहानी,क्या कविता .. लेकिन आपकी कविता ने मन को छू लिया। किसी भी चीज का निर्माण बहुत सारी बातो/ भावनाओ, कभी खुशी, कभी पीड़ा से गुजर कर होता है..सच,आपने परदे के पीछे का सच खूवसूरती से बयां किया। बढिया प्रस्तुति। बधाई ।अब देख लो,आपकी कविता ने मेरी नींद का बलिदान लेकर कमेण्ट करने पे मजबूर कर ही दिया न..:))

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  2. आपकी कुर्बानी याद रखी जायेगी ..ये बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा ..कुछ और सच सामने आने को बेताब हैं ...आभार पिंकी

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  3. Itefaqan younhi aap tak aa pahuncha, aur aap ki kavita padhi,…kuchh dinon se aata hun is ko padhne ke liye,,,main kavita nahin likhta aur agar likhta hota to ehsas wohi hote,,,kala bagh ka woh rail ka pul, ooske neeche behta woh darya aur dur baadlon main lipte khubsoorat pahaad,,,,,isakhel main mere ghar ka woh bahut bada aangan ,,,,oos main ke bahut sare darakht jinpar kaiyee baar din main chadta aur utarta main…meri bulbul mera bater… woh quram darya,,,,jis par jab jaata toh maan ka haath chhura kar kood padta aur tairta rehta….woh sindh darya jo samundar zyada lagta tha darya kam,,,,woh ghode aur who oonton ke kachaave,,,,,,,woh khaji ke darakht aur pathar phaink kar bahut sari khajoor tod kar girana aur khaana,,,who kalur, who trag aur who maadi aur mianwali……phir kaun thay who log jinhon ne naqshe par ek lakeer khenchi….aur hum se hamaara bachpan chheen liya,,,…kitne dard bhare din thay woh jab hum har oos gaadi main apnon ko dhoondte thay jo udhar se idhar aati thi,,,,sab kuchh udhar aur idhar main tabdeel ho gaya tha ,,,,,,,,is ke baad toh aap ke yah ehsasaat…mere ehsasaat ban jaate hain,,,,,,,,,,
    कुछ साए हैं
    फ़ैल जाते हैं शाम ढले
    एक छोर से दूसरे छोर तक
    ढक लेते हैं स्मृतियों को
    सायों के भयावह नर्तन में
    धब्बे हैं खून के
    चिपके हैं आत्मा पर
    एक पूरा ख़ूनी इतिहास लिखे जाने के बाद
    Vndana ji main aap ko naman karta hun,,,,aap kuchh aur bhi likhiye,,,,bahut achha likhti hain

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    1. यह नाम मेरे लिए पूरी कायनात है ..कृष्णलाल ग्रोवर ..मेरी जड़ें ..मेरी पहचान ..मेरे वालिद ..
      और आपका इस नाम से जुड़ा होना मेरे दिल में इज्ज़त के सिवा और कुछ नहीं बताता मुझे ..मेरा जन्म पार्टीशन के बहुत बाद का है , जो मैंने लिखा ..वो मैंने मम्मी -पापा और अपने परिवार की आँखों से देखा है ..
      तह-ए-दिल से शुक्रिया ..आपके आने ने मेरे लिखने को सार्थक कर दिया ..
      सादर

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  4. आपकी कविता मन तक पहुची

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  5. कविता की यात्रा शायद ऐसी ही होती है

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    1. शायद ..
      शुक्रिया वंदना जी

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