आती है टापों की आवाज़
गुज़रते हैं घोड़ों और ऊंटों के कछावे जब
आज भी ...
आज भी
दिल से गुज़रते कई काफिले
पल भर को सहम जाते हैं
सिंध के समंदर पर लहराते
उधर से इधर को आते हुए
चीर दिया गया था बीचों-बीच से
हस्ती को
बहता लहू
घिसट रहा था
उधर से इधर ..
दौड़ती रेलगाड़ियों में
परिचित चेहरों को ढूंढते
बदहवास कुछ क़दम
जो नहीं पड़े थे कभी ज़मीन पर
बेसुध नंगे सिर
पगड़ियों की शान भूल
बोगी-दर-बोगी
तलाशते उस बच्चे को
छूट गया था जो उधर
दसवीं के इम्तहान के लिए
शको-शुबह के मारे
कोसते उस लम्हे को
जिसमें सौंप आये थे
अपनी अमानत
और लाये थे साथ अपने
हिफाज़त का वादा
उधर से आती हर गाड़ी
लाती इधर
एक उम्मीद
क्या तलवार देख पाएगी
उससे जुडी उम्मीदें
या काट डालेगी हर सपना
उधर ..
घंटों ज़िन्दगी ने मौत को अपने जिस्म पर
सरसराते देखा था
मुर्दा जिस्मों के बीच एक ज़िन्दगी
सांस ले रही थी सहमी सहमी
पांच ट्रक आज भी जिंदा हैं
स्मृति में
जो चले थे जिंदगियों को लेकर उधर से ..
खून की चादर ओढ़े
अकेले रेखा पार करते
इधर को आते
अपराध बोध से ग्रसित
सवालिया आँखों से आँखे चुराते
मुहाजिर ने रख दिया था क़दम
इधर ...
सिंध की छाती पर
लहराई एक कश्ती
इधर या उधर ..की खींच-तान में झूलती
अंततः धकेली गई इधर
हिफाज़त का वादा निभाया गया था
ज़मीन के टुकड़े हुए
वादों और भरोसे के नहीं
इधर और उधर ..
इधर की ज़मीन पर
वो जवां क़दम
नहीं भूल पा रहे थे उधर की कशिश
वो पत्थर उछालना
खजूर का टप्प से गिरना
दरख़्त-दर-दरख़्त फुदकते
वो बटेर वो बुलबुल
वो रेल का पुल
वो केम्पबेलपुर का स्कूल और
प्रार्थना ..
'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी '
माँ का हाथ छुड़ा कर
समंदर सी सिंध में छलांग लगा देना
देर तक गहराई नापना
वो बेडमिन्टन कोर्ट और
फुटबाल का मैदान
वो ओवरकोट वो कैप
वो कोर्डरॉय वो लैदर शूज़
उधर ..
मलमल का कुरता
पाँव नंगे ...
ज़िन्दगी फिर भी आगे बढ़ना चाहती थी
'कुली .....'
और उस ज़हीन ने उठा लिया
दौड़ कर सारा सामान
'शाह जी ' और 'लालाजी ' छूट गए थे उधर
पल्लेदारी का एक आना
कहीं ज्यादा कीमती था इधर
केम्प-दर- केम्प ढूँढना था
टूटी और छूटी कड़ियों को
इधर ..
जो छूटा था उधर
घर-आँगन ,ऊँट-घोड़े ,
शानो-शौक़त नहीं था
जो छूटी थी
पहचान थी वो
खुद से काट कर फेंक दिया गया था उन्हें
बिना तलवारों -खंजर के
उधर भी ..
इधर भी ..
(08-10-2012)