कभी मैं कह नहीं पायी
कभी मुझे कहने नहीं दिया
क्या कहती
यही न कि
थोडा जीने दो
जब भी बाहर झांकना चाहा
आँखों पर हाथ रख दिया
क्या देखती मैं
जो देखा था .. उसके बाद
पाँव बाहर रखना चाहा
दरवाजे पर सांकल थी
कहाँ जाती मैं
खुद को रौंदती वापिस आई
हर बार
पहुंची कहीं नहीं
न जी सकी
न मर सकी
देखती हूँ फटी फटी आँखों से
दुनिया
जो आधी भी मेरी नहीं है