कुछ अफ़साने : लाज़िमी हैं --(7)
ये कुछ नया ढंग था। सर ढका हुआ था , और चेहरा भी। ऐसा ही हुलिया तो इसके दोस्त का था , और ऐसा ही भाई का । पर वो दोनों तो नहीं आने वाले थे आज। सर से मुआइना करते - करते नज़र ज्यों ही पैरों पर पड़ी , उसने राहत की सांस ली … तो आ गए जनाब .... और बस , उसे खुराफात सूझने लगी। वो धीरे - धीरे चलता अंदर आ गया। गरदन घुमाता,सर खुजाता पहुँच गया अपने वाले कोने में। सर से साफा उतारा और बिना कुछ बोले पसर गया दीवान पर। जिस तरह वो पसरा था , उसे देखकर इसे अपने शहर के सांड याद आ गए , जो बीच घंटाघर रास्ता रोक कर पसरे रहते। भगाओ तो सींग मार कर भगा देते थे। इतना तो यक़ीन था कि सींग नहीं मारेगा। नथुने फड़काएगा ,गरदन झटकायेगा और कॉफ़ी पीकर सो जाएगा।
आज वो नहीं , उसके पैर पहचान बनकर इसके दरवाजे आये थे।
''सुन ,तेरा सर तेरे धड़ पर ना भी रखा हो , तब भी मैं तुझे पहचान सकती हूँ। ''
बहुत बेज़ारी से सर उठाया उसने , अनमना सा उसकी तरफ देखने लगा , जैसे कह रहा हो 'भर पाया मैं तेरी बातों से ', लेटे - लेटे ही पैरों से चप्पल खिसकायी और दीवार की तरफ करवट बदल ली। फर्श पर रेत बिखर गई। रेत का बिखरना और इसका बिफरना एक साथ हुआ। काबू किया खुद को और उसे अपने रौशन ख़याल से वाकिफ कराने लगी। जोश में थी।
''चेहरे ही क्यों पहचान हों , पैर क्यों नहीं। पैर भी तो कितने अलग होते हैं हम सब के। कितना मज़ा आता ये कहने में , ''ला ला ला के पैर कितने भारतीय हैं , री री री के पैर क्लियोपेट्रा की तरह और ना ना ना के पैर मर्लिन मुनरो जैसे …शा शा शा के पैरों में पंजाब के जालंधर की छाप हैं। और वो ... क्या नाम है .... तेरी पहाड़न का ? उसके तो पैरों के नाखून मंगल चाचा की भैंस यामा की तरह … लम्बे ...नुकीले , इसे तू मेरी हसद समझ ले। और मेरे पैर - डी सी पी मीणा की तरह , एकदम पुलसिया , उनके लिए जो बातों से नहीं मानते। रहे तेरे पैर ,तो वो भूत के पाँव -- बिना बताए भूत की तरह गायब।
'' सोने भी दे मुझे। ''
'' ये मुमकिन नहीं। ''
'' क्या बिगाड़ा है मैंने तेरा ? ''
'' क्या बिगाड़ सकता है तू ? ''
'' माफ़ी मांग रहा हूँ , अब सोने दे। ''
'' मैं मांग लेती हूँ। तू उठ के बैठ। ''
'' क्या बिगाड़ा है मैंने तेरा ? ''
'' डायलॉग रिपीट करेगा तो फ़ाउल हो जाएगा। ''
'' किस जनम का बदला ले रही है ? ''
'' इसी .... बिलकुल इसी जनम का। तू फिर मिला ना मिला। ''
'' टी वी चला दे , रहम कर। शेयर बाज़ार का बुरा हाल है। ''
''तुझसे भी ज़्यादा ?''
'' क्या चाहती है , पैर पकडूँ तेरे ?''
'' हा हा … पैर ... हाँ, पकड़ ले। मेरी एड़ी पर मोहब्बत का बोसा दे। ''
''ये क्या बात हुई ?''
'' तू ही तो कहता है कि मोहब्ब्बत में कोई ऊँच नीच नहीं। सब बराबर है। कोई सिर , कोई पैर नहीं होता ---- वैसे तेरी बातों का भी कोई सिर - पैर नहीं होता। तू न कहता था जब देर देर रातों को वो लम्बी-लम्बी रूहानी बातें किया करता था कि सब साँझा , सब हमारा होता है,एक सांस की दूरी है तेरे - मेरे बीच , और तू , मैं हो जाएगा। जब चेहरा पहचान था तब लब , और अब जब पैर हमारी पहचान हैं तो मोहब्बत का बोसा एड़ी पर ही तो बनता है। ''
'' तुझे पता है , तू क्या कह रही है ''
'' तुझे तो पता है न ,तू क्या क्या कहता है ,किस किस से कहता है --- और क्या क्या करता है ? ''
'' एक कप चाय पिला दे।''
'' भूल रहा है। डायरी में लिख कर रख। मेरे साथ एक कप कॉफ़ी पीता है तू ।''
'' कॉफ़ी ही पिला दे। ''
'' ज़हर कितना ? एक चम्मच ? ''
''तुझे लगता है तू बच जाएगी ? ''
'' मेरी हिफाज़त तो तू करेगा ना । अपनी जान की हिफाज़त नहीं करेगा ? और इतनी ज़ोर से 'सड़प' मत कर , कॉफ़ी है ,ज़हर नहीं। ''
'' क्या पता मेरे ही हाथों मारी जाए ''
'' तू मेरा बाल तक तो छू नहीं पाया आज तक । ''
'' बाल बाल बची है तू हर बार। हो सकता है ऊपरवाला इतना मेहरबान ना हो इस बार। ''
''हो सकता है कोई नीचेवाला तेरे गले के नाप का फंदा बनवा कर बैठा हो। ''
''मेरे हाथ ही काफी हैं तेरे लिए। ''
''तू तो कहता है मैं मज़ाक नहीं करता। ''
'' संजीदा मज़ाक कर लेता हूँ। ''
''मैं भी मौके का फायदा उठा लेती हूँ आज। मेरा भी बहुत मन है तेरे साथ मज़ाक करने का। मैं मज़ाक कर रही हूँ कि तू तभी तक महफूज़ है , जब तक मैं सलामत हूँ। जब तेरा जीने से मन भर जाए , तू ज़िन्दगी से ऊब जाए , तो मुझे गोली मार देना। सुबह उठकर पेट साफ़ करने से पहले ,मुंह साफ़ करते वक़्त पहले कुल्ले के साथ पहली दुआ मेरे लिए किया कर कि मुझे बुखार भी ना हो , नहीं तो मच्छर के हलक में हाथ घुसेड़ा तो तेरा ही नाम निकलेगा। तेरा दर्जा अब आई एस आई का है , मच्छर तेरा एजेंट , ..... और मैं हिंदुस्तान। ''
''कुछ काम भी कर लिया कर , कितना बोलती है। "
'' अरे हाँ , अच्छा याद दिलाया। काम शुरू किया है मैंने। ''
''शुक्र है ,क्या काम ?''
''कुंडली बनाने का, तेरी भी बनायी है। ''
'' ..... ''
'' तेरा पैर क्यों लटक गया ? ''
'' …… ''
''अरे , तेरे पैर का रंग क्यों उड़ गया ?''
''मैं चलता हूँ। ''
''सुन ,तू अपनी मोहब्बतें जारी रख और मुझे अपना पैर अब कभी मत दिखाना। ''
वो जिन पैरों से आया था , उन्ही पैरों से लौट गया।
कॉफी ठंडी यख हो चुकी थी।
पहला घूँट अभी हलक में ही था ।
ये कुछ नया ढंग था। सर ढका हुआ था , और चेहरा भी। ऐसा ही हुलिया तो इसके दोस्त का था , और ऐसा ही भाई का । पर वो दोनों तो नहीं आने वाले थे आज। सर से मुआइना करते - करते नज़र ज्यों ही पैरों पर पड़ी , उसने राहत की सांस ली … तो आ गए जनाब .... और बस , उसे खुराफात सूझने लगी। वो धीरे - धीरे चलता अंदर आ गया। गरदन घुमाता,सर खुजाता पहुँच गया अपने वाले कोने में। सर से साफा उतारा और बिना कुछ बोले पसर गया दीवान पर। जिस तरह वो पसरा था , उसे देखकर इसे अपने शहर के सांड याद आ गए , जो बीच घंटाघर रास्ता रोक कर पसरे रहते। भगाओ तो सींग मार कर भगा देते थे। इतना तो यक़ीन था कि सींग नहीं मारेगा। नथुने फड़काएगा ,गरदन झटकायेगा और कॉफ़ी पीकर सो जाएगा।
आज वो नहीं , उसके पैर पहचान बनकर इसके दरवाजे आये थे।
''सुन ,तेरा सर तेरे धड़ पर ना भी रखा हो , तब भी मैं तुझे पहचान सकती हूँ। ''
बहुत बेज़ारी से सर उठाया उसने , अनमना सा उसकी तरफ देखने लगा , जैसे कह रहा हो 'भर पाया मैं तेरी बातों से ', लेटे - लेटे ही पैरों से चप्पल खिसकायी और दीवार की तरफ करवट बदल ली। फर्श पर रेत बिखर गई। रेत का बिखरना और इसका बिफरना एक साथ हुआ। काबू किया खुद को और उसे अपने रौशन ख़याल से वाकिफ कराने लगी। जोश में थी।
''चेहरे ही क्यों पहचान हों , पैर क्यों नहीं। पैर भी तो कितने अलग होते हैं हम सब के। कितना मज़ा आता ये कहने में , ''ला ला ला के पैर कितने भारतीय हैं , री री री के पैर क्लियोपेट्रा की तरह और ना ना ना के पैर मर्लिन मुनरो जैसे …शा शा शा के पैरों में पंजाब के जालंधर की छाप हैं। और वो ... क्या नाम है .... तेरी पहाड़न का ? उसके तो पैरों के नाखून मंगल चाचा की भैंस यामा की तरह … लम्बे ...नुकीले , इसे तू मेरी हसद समझ ले। और मेरे पैर - डी सी पी मीणा की तरह , एकदम पुलसिया , उनके लिए जो बातों से नहीं मानते। रहे तेरे पैर ,तो वो भूत के पाँव -- बिना बताए भूत की तरह गायब।
'' सोने भी दे मुझे। ''
'' ये मुमकिन नहीं। ''
'' क्या बिगाड़ा है मैंने तेरा ? ''
'' क्या बिगाड़ सकता है तू ? ''
'' माफ़ी मांग रहा हूँ , अब सोने दे। ''
'' मैं मांग लेती हूँ। तू उठ के बैठ। ''
'' क्या बिगाड़ा है मैंने तेरा ? ''
'' डायलॉग रिपीट करेगा तो फ़ाउल हो जाएगा। ''
'' किस जनम का बदला ले रही है ? ''
'' इसी .... बिलकुल इसी जनम का। तू फिर मिला ना मिला। ''
'' टी वी चला दे , रहम कर। शेयर बाज़ार का बुरा हाल है। ''
''तुझसे भी ज़्यादा ?''
'' क्या चाहती है , पैर पकडूँ तेरे ?''
'' हा हा … पैर ... हाँ, पकड़ ले। मेरी एड़ी पर मोहब्बत का बोसा दे। ''
''ये क्या बात हुई ?''
'' तू ही तो कहता है कि मोहब्ब्बत में कोई ऊँच नीच नहीं। सब बराबर है। कोई सिर , कोई पैर नहीं होता ---- वैसे तेरी बातों का भी कोई सिर - पैर नहीं होता। तू न कहता था जब देर देर रातों को वो लम्बी-लम्बी रूहानी बातें किया करता था कि सब साँझा , सब हमारा होता है,एक सांस की दूरी है तेरे - मेरे बीच , और तू , मैं हो जाएगा। जब चेहरा पहचान था तब लब , और अब जब पैर हमारी पहचान हैं तो मोहब्बत का बोसा एड़ी पर ही तो बनता है। ''
'' तुझे पता है , तू क्या कह रही है ''
'' तुझे तो पता है न ,तू क्या क्या कहता है ,किस किस से कहता है --- और क्या क्या करता है ? ''
'' एक कप चाय पिला दे।''
'' भूल रहा है। डायरी में लिख कर रख। मेरे साथ एक कप कॉफ़ी पीता है तू ।''
'' कॉफ़ी ही पिला दे। ''
'' ज़हर कितना ? एक चम्मच ? ''
''तुझे लगता है तू बच जाएगी ? ''
'' मेरी हिफाज़त तो तू करेगा ना । अपनी जान की हिफाज़त नहीं करेगा ? और इतनी ज़ोर से 'सड़प' मत कर , कॉफ़ी है ,ज़हर नहीं। ''
'' क्या पता मेरे ही हाथों मारी जाए ''
'' तू मेरा बाल तक तो छू नहीं पाया आज तक । ''
'' बाल बाल बची है तू हर बार। हो सकता है ऊपरवाला इतना मेहरबान ना हो इस बार। ''
''हो सकता है कोई नीचेवाला तेरे गले के नाप का फंदा बनवा कर बैठा हो। ''
''मेरे हाथ ही काफी हैं तेरे लिए। ''
''तू तो कहता है मैं मज़ाक नहीं करता। ''
'' संजीदा मज़ाक कर लेता हूँ। ''
''मैं भी मौके का फायदा उठा लेती हूँ आज। मेरा भी बहुत मन है तेरे साथ मज़ाक करने का। मैं मज़ाक कर रही हूँ कि तू तभी तक महफूज़ है , जब तक मैं सलामत हूँ। जब तेरा जीने से मन भर जाए , तू ज़िन्दगी से ऊब जाए , तो मुझे गोली मार देना। सुबह उठकर पेट साफ़ करने से पहले ,मुंह साफ़ करते वक़्त पहले कुल्ले के साथ पहली दुआ मेरे लिए किया कर कि मुझे बुखार भी ना हो , नहीं तो मच्छर के हलक में हाथ घुसेड़ा तो तेरा ही नाम निकलेगा। तेरा दर्जा अब आई एस आई का है , मच्छर तेरा एजेंट , ..... और मैं हिंदुस्तान। ''
''कुछ काम भी कर लिया कर , कितना बोलती है। "
'' अरे हाँ , अच्छा याद दिलाया। काम शुरू किया है मैंने। ''
''शुक्र है ,क्या काम ?''
''कुंडली बनाने का, तेरी भी बनायी है। ''
'' ..... ''
'' तेरा पैर क्यों लटक गया ? ''
'' …… ''
''अरे , तेरे पैर का रंग क्यों उड़ गया ?''
''मैं चलता हूँ। ''
''सुन ,तू अपनी मोहब्बतें जारी रख और मुझे अपना पैर अब कभी मत दिखाना। ''
वो जिन पैरों से आया था , उन्ही पैरों से लौट गया।
कॉफी ठंडी यख हो चुकी थी।
पहला घूँट अभी हलक में ही था ।