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Tuesday 25 August 2015

कुछ अफ़साने : लाजिमी हैं ---- (3)
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इसके दसियों बार पूछने पर भी उसने बता कर नहीं दिया कि वो कल कहाँ गया था ..एक बार उसके मुंह से भी सुनना   चाहती थी, आखिरकार इसे भी रास्ता सूझ गया .
  '' मुझे पता है तू मुझे क्यों नहीं बता रहा .''

उसने सवालिया नज़रों से इसकी तरफ देखा , दुष्टता से हँस रही थी .

   '' पढ़ नहीं पाया न,  मील के पत्थर पर लिखा ,हिज्जे जोड़ कर पढने में तुझे जितना  वक़्त लगता ,उतने  वक़्फ़े में तो ओबामा अमरीका से हिन्दुस्तान पहुँच गया होता ,है न ? ''

   ''कभी-कभी मेरा मन करता है तेरी गर्दन मरोड़ दूं .''

   ''तो मरोड़ दे न ''

   ''ये कमबख्त प्यार ..''

   ''तो प्यार से मरोड़ दे न ''

    वो हंस दिया ,बहुत दिनों बाद हंसा था

   ''अगली बार  तू मेरे साथ चलना ,तू पढ़ लेना ''

    ''और तू क्या करेगा ?''

   ''मैं तुझे पढूंगा '

गालियों को न्योता दे दिया था उसने .इसने आँखें बड़ी की और पांच-छह गालियाँ दे डाली आँखों से। तकिया उठा कर मार दिया ,एक गाली और हुई। दो गालियाँ लात जमाने में हो गई ..अभी भी हल्का महसूस नहीं कर रही थी .बिफरी सी इधर-उधर घूमती रही . ..बाहर गई , अखबारों के ढेर में से एक ढेर उठाया , फनफनाती हुई आई ,गालियों की बौछार का इंतजाम करके लायी थी .. धूल भरा ढेर पटक दिया उसके ऊपर  ..

हालात का पूरा लुत्फ़ उठाता था वो भी। उसकी आँखें बता रही थी कि वो फिर किसी खुराफात की फ़िराक में था.

   ''तुनकती क्यों है बात-बात में ?''

   ''मुझे नहीं जाना तेरे साथ कहीं ''

   ''ठीक से पढूंगा ,हिज्जे मिलाकर ..हर्फ़ दर हर्फ़ ''

   ''तेरी फाइलें ,तेरी फोन कॉल्स ,तेरी मीटिंग्स ...''

  ''सिर्फ वो इबारत जो तेरी आँखों में लिखी है ''  बहुत संजीदा हो उठा  था वो .आँखों में नमी उतर आई .''चलेगी न मेरे साथ ,मैं अकेला रास्ता भूल जाता हूँ .''
   '' कौन सा रास्ता भूल जाता है तू ?
    '' मैं कल घाट गया था ,भटक गया ''
     ''शमशान घाट ?"
     ''तेरा दिमाग खराब है?''
     ''अब तू इतने घाट जाता है ,हिसाब भी नहीं रखा जाता मुझसे तो ……,मुझे लगा ये आखिरी घाट होगा  ''
      ''तू चलेगी न मेरे साथ ..... ?"

वो बोल रहा था ..ये चुपचाप बैठी एकटक देखे जा रही थी उसे .एकाएक उछल कर उसके ऊपर आई , ''ये तेरी कमीज में बटन कहाँ से आये ? कहाँ गया था ?'' गिरहबान थाम लिया उसका .इस बेरहमी से पकड़ कर खींचा कि बटन टूट कर दूर जा गिरे  .इसने जैसे राहत की सांस ली .आँखों में चमक लौट आई थी .

  ''क्या कह रहा था तू अभी ...मेरी आँखों में ...क्या ?''
 
   वो वहाँ था ही नहीं ..

   वो कहीं और था .

17-05-2013 

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (26-08-2015) को "कहीं गुम है कोहिनूर जैसा प्याज" (चर्चा अंक-2079) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. शुक्रिया डॉ शास्त्री..

    सादर ..

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  3. क्या खूब लिखा है..!! लाजवाब..!!!

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    1. शुक्रिया संजय जी ..

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