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Wednesday, 16 May 2012

नियति






मैं 
खुद से शुरू होकर 
खुद पर ही ख़त्म हो जाती हूँ 
सवाल यह नहीं ...
मैं मर गई 
या 
मार डाली गई 
सवाल यह है कि
क्या मरना ही नियति था ?

14 comments:

  1. नहीं मरना अब नियति नहीं है... एक गंभीर सवाल उठती कविता...
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  2. aapka vishwaas dekh kar achchha lagaa..
    Thankyou Arun ji

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  3. मरना अंत नही
    मारना नियति नही...
    नियति है
    हमारा होना
    ....
    अगर नियति ही
    नियन्ता है तो
    हम कहाँ रह गये..
    न जीने मेँ न मरने मेँ...
    आपका प्रश्न
    फिर भी यक्ष प्रश्न है...

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    1. Dileep Bhaa.. iss prashn ki niyati yahii hai k yeh prashn hii rahe ..

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  4. सवाल अनुत्तरित है..... मगर जवाबों से नियति बदलती भी नहीं.... हाँ कई बदले हुए अंजाम...आनेवाले जवाबों को बदल सकते है.

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    1. Jawaab badaltaa hai gar ... toh sawaal ki shaql bhi yeh nahi'n rah paayegii.. aane waale sawaal aur badle huye jawaab paraspar virodhi na ho'n toh ...niyati badle na badle.... kaafi kuchh badal sakta hai ..

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  5. इसे "सवाल" कहो या "जवाब"... परंतु...

    नियति की नियत से पार-पाना नियत करना भी नियति की ही नियत है

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  6. यथार्थमय सुन्दर पोस्ट

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  7. वंदना जी फुर्सत मिले तो आदत मुस्कुराने की पर ज़रूर आईये

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    1. Ek Achchhi Aadat k liye mujhe aana hii padega ..
      Shukriya Sanjay Ji ..

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