कह रहा है जब से तू
सुन रही हूँ तब से मैं
वो क्या है
आँख में भरा - भरा
दिल में खाली खाली सा
वो क्या है
ढूँढता .तलाशता
खोया खोया ,खोया सा
वो क्या है
आया तो गया नहीं
ठहरा तो फिसल गया
वो क्या हैबरसों में है फैला -फैला
लम्हों में सिमटता सा
वो क्या है
जिस्म को छुआ नहीं
रूह को भिगो गया
वो क्या है
कब ,कहाँ ,कैसे ,किधर
भीड़ में सवालों की
वो क्या है
भीतर भीतर घुट रहा
हुआ कभी नमू नहीं
वो क्या है
Jane kya hota hai woh.
ReplyDeleteकब ,कहाँ ,कैसे ,किधर
Deleteभीड़ में सवालों की...
rishton ke nayi paribhasha gadhtee huyee rachna ,tamam amurta komal bhavon ko badi hee komalata se aapne abhivyakta kiya hai . ek aisi kavita jo jism ko bina chhiye ruh ko bhigo deti hai.meri badhai sweekar karein Vandana jee
ReplyDeleteBahut bahut shukriya Sir..
Deletechhiye ho chhuye padhein
ReplyDeleteवो क्या है , जो हो कर भी नहीं होता ...और ना होकर भी सब कुछ होता है
ReplyDeleteरिश्तों के मानी तलाशती दिलकश नज़्म....
Thanks A Lot Ashok Da
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