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Saturday, 19 May 2012


ज़िन्दगी इतनी है कि
हम जो उठे ,उठते गए और उठ ही गए ..
ज़िन्दगी इतनी है
कि हम जो चले .चलते रहे ,बस चले ही चले ..
ज़िन्दगी इतनी है
कि बैठ गए ,बैठे ही रहे और बैठ गए ..
ज़िन्दगी इतनी है
कि  ढलती रही ,ढलती गई और ढल सी गई   ..
ज़िन्दगी इतनी है
कि  सोने लगी,सो सी गई और सो ही गयी   ..

ज़िन्दगी कितनी है
कि उठ भी गई ,चल भी पड़ी ,
बैठ गई ,ढल भी गई
और सो भी गई ,
पर रुकी नहीं 

12 comments:

  1. जीवन चलने का ही तो नाम है ...
    फिर शिकायत क्यों ..?

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    1. ek soch hai jo umadtii hai ..ghumadtii hai ...

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  2. अच्छा ही हुआ रुके भी क्यों जिंदगी

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    1. Zindagi ki saari khoobsurti beshaq uske chalte jaane mein hii hai... bahut kuchh kahti hai zindagi...aur kahlwaati bhi hai...

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  3. ज़िन्दगी कितनी है
    कि उठ भी गई ,चल भी पड़ी ,
    बैठ गई ,ढल भी गई
    और सो भी गई ,
    पर रुकी नहीं

    bahut sundar

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    1. बस ..यूँ ही तो है

      आभार वंदना जी

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  4. आपको पहली बार पढ़ा बढ़िया लगा ...आप भी पधारो मेरे घर पता है ....
    http://pankajkrsah.blogspot.com
    आपका स्वागत है

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    1. आपने पढ़ा ,सराहा ,अच्छा महसूस हुआ
      शुक्रिया

      आपके घर आना हुआ मेरा ,बहुत अच्छा लगा

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  5. सुंदर अभिव्यक्ति..

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया, सुषमा जी ..

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  6. सुन्दर प्रस्तुति ..सुन्दर ताना बाना...:)

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    1. जी दोस्त ..यही ताना-बाना ही तो ज़िन्दगी कहलाता है ..
      शुक्रिया खूबसूरत टिप्पणी के लिए

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