ज़िन्दगी इतनी है कि
हम जो उठे ,उठते गए और उठ ही गए ..
ज़िन्दगी इतनी है
कि हम जो चले .चलते रहे ,बस चले ही चले ..
कि हम जो चले .चलते रहे ,बस चले ही चले ..
ज़िन्दगी इतनी है
कि बैठ गए ,बैठे ही रहे और बैठ गए ..
कि बैठ गए ,बैठे ही रहे और बैठ गए ..
ज़िन्दगी इतनी है
कि ढलती रही ,ढलती गई और ढल सी गई ..
कि ढलती रही ,ढलती गई और ढल सी गई ..
ज़िन्दगी इतनी है
कि सोने लगी,सो सी गई और सो ही गयी ..
कि सोने लगी,सो सी गई और सो ही गयी ..
ज़िन्दगी कितनी है
कि उठ भी गई ,चल भी पड़ी ,
बैठ गई ,ढल भी गई
और सो भी गई ,
पर रुकी नहीं
कि उठ भी गई ,चल भी पड़ी ,
बैठ गई ,ढल भी गई
और सो भी गई ,
पर रुकी नहीं
जीवन चलने का ही तो नाम है ...
ReplyDeleteफिर शिकायत क्यों ..?
ek soch hai jo umadtii hai ..ghumadtii hai ...
Deleteअच्छा ही हुआ रुके भी क्यों जिंदगी
ReplyDeleteZindagi ki saari khoobsurti beshaq uske chalte jaane mein hii hai... bahut kuchh kahti hai zindagi...aur kahlwaati bhi hai...
Deleteज़िन्दगी कितनी है
ReplyDeleteकि उठ भी गई ,चल भी पड़ी ,
बैठ गई ,ढल भी गई
और सो भी गई ,
पर रुकी नहीं
bahut sundar
बस ..यूँ ही तो है
Deleteआभार वंदना जी
आपको पहली बार पढ़ा बढ़िया लगा ...आप भी पधारो मेरे घर पता है ....
ReplyDeletehttp://pankajkrsah.blogspot.com
आपका स्वागत है
आपने पढ़ा ,सराहा ,अच्छा महसूस हुआ
Deleteशुक्रिया
आपके घर आना हुआ मेरा ,बहुत अच्छा लगा
सुंदर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया, सुषमा जी ..
Deleteसुन्दर प्रस्तुति ..सुन्दर ताना बाना...:)
ReplyDeleteजी दोस्त ..यही ताना-बाना ही तो ज़िन्दगी कहलाता है ..
Deleteशुक्रिया खूबसूरत टिप्पणी के लिए