तुम्हें पता है न ..
मुझे तुमसे प्यार है
जी करता है
एक दिन के लिए ..बन जाऊं
जो माँ कहती थी
बच्ची ..
तुम्हें बताना है ..
मुझे बहुत प्यार है
कल -कल करती नदी के धारों से
तितलियों से
फूलों से
खुशबुओं से
तुमसे भी उठती है एक खुशबू
तुम्हें पता है न ..
मेरे पास पंख नहीं हैं
फिर भी उड़ रही हूँ
हवाओं के साथ
इन्ही पंछियों ..तितलियों की तरह
वादी के फूलों को छूती
कल -कल करती नदी के धारों को छूती
पर मैं तुम्हें छूना चाहती हूँ
तुम्हें पता है न ..
डरती हूँ खुद से
अपने जिद्दी मन से
कहीं तुम्हारी साँसों के साथ
ह्रदय में उतर गई
तो फिर
विस्थापन गवारा नहीं होगा मुझे
तुम्हें पता है न ..
मैं बताना चाहती हूँ
तुम्हें पाने या खोने की
ज़द्दो -ज़हद नहीं है यह
यह सफ़र है मेरा
खुद को खो देने
और फिर से पा लेने का
तुम्हें रुकना होगा
मेरे पहुँचने तक
वरना फिर खो जाउंगी मैं
बच्ची हूँ
ek jeevan nikal jaata hai kisi ko kehne main ki tum se pyaar hai, aur ek pal bhi nahi lagta kisi se kehne main ki tum se nafrat hai! Aur jab pyaar sabhi hadein tod gherta hai to aksar insaan ventilator par udhaar ki saansien gin reha hota hai!Tabhi to zindagi kaisee hai paheli haaye!
ReplyDeleteZindagi sach hi bahut badi paheli hai ... pyaar aur nafrat -- yeh dono'n pahloo hi zindagi ko jeene layak banaate hain aur maayne bhi dete hain..
DeleteThankyou Pranesh ji... khoobsurat tippani k liye .
कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
ReplyDeleteवर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो NO करें ..सेव करें ..बस हो गया !
विस्थापन गवारा नहीं होगा मुझे
ReplyDeleteतुम्हें पता है न ..
Thankyou Ashok Da ..
Deleteआपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - हे प्रभु पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteशुक्रिया तुषार जी
Deleteसादर ..
सुंदर रचना..
ReplyDeleteशुक्रिया कौशल जी
Deleteसादर